मध्यकालीन इतिहास से पता चलता है कि संसार की मंगल कामना के लिए लड़कियां, विवाहित, विधवाएं सभी स्त्रियां शिवरात्रि का व्रत करती हैं।
महाशिवरात्रि
इसका मतलब यह नहीं कि शिवरात्रि सिर्फ स्त्रियों के लिए है। शिवरात्रि का पहला अनुष्ठान एक पुरुष ने ही किया था।
महाशिवरात्रि
वह कहानी भी स्वयं शिव ने बताई है। शिव पुराण के अनुसार, पुराने जमाने में काशी यानी आज की वाराणसी में एक निर्दयी शिकारी रहता था।
महाशिवरात्रि
उसे धर्म-कर्म से कुछ लेना-देना नहीं था। उसका रोज का काम ही पशु हत्या थी।
महाशिवरात्रि
एक दिन वह शिकार करने के लिए जंगल गया और रास्ता भटक गया। शाम घिर आई।
महाशिवरात्रि
जंगल के जीव-जन्तुओं के डर से वह एक पेड़ पर चढ़ गया। दिन-भर कुछ खाने को नहीं मिला था।
महाशिवरात्रि
वह डाली पर बैठे-बैठे पत्ते तोड़कर नीचे फेंकने लगा। वह बेल का पेड़ था। पेड़ के नीचे एक शिवलिंग था। शिकारी को इस बारे में कुछ पता नहीं था।
महाशिवरात्रि
वह शिव चतुर्दशी का दिन था, शिव चतुर्दशी, यानी महाशिवरात्रि। और शिकारी भूखा था।
महाशिवरात्रि
उसके फेंके हुए पत्ते बार-बार शिवलिंग पर चढ़ रहे थे। दूसरे दिन शिकारी घर लौटकर देखता है कि उसके घर एक अतिथि आया हुआ है।
महाशिवरात्रि
वह शिकारी स्वयं न खाकर अपने हिस्से का भोजन अतिथि को दे देता है। इस तरह मंत्रोच्चार न जानते हुए भी उस शिकारी ने सही तरीके से शिवरात्रि व्रत का पालन कर लिया।
पोस्ट को लगातार पढ़ने और ऐसे ही और भी पोस्ट को पढ़ने के लिए निचे Click Here वाले बटन पर Click करे